Pregnant Care In Hindi- माता और शिशु के स्वस्थ्य की रक्षा के नुस्खे और उपाय

Pregnancy me mahila kaise healthy rahe?

गर्भावस्था में स्वस्थ कैसे रहें ?
नारी के जीवन का महत्वपूर्ण समय गर्भावस्था का होता है। गर्भिणी स्त्री अनेक जटिलताओं का सामना करके प्रसव के समय भारी वेदना सहकर शिशु को जन्म देती है। गर्भावस्था के समय कुछ आवष्यक बातें ध्यान में रखकर वह स्वस्थ रह सकती है तथा स्वस्थ शिशु को जन्म दे सकती है। गर्भिणी के स्वास्थ्य- सम्बन्धी बातों का ज्ञान स्वयं ग्रहणी को तथा उसके पारिवारिक जनों को जानना अति आवश्यक है।  

Pregnancy Ke Lakshan –

गर्भावस्था के सामान्य लक्षण-

  1.  माहवारी का रूक जाना
  2.  उलटियाँ आना
  3.  स्तन में परिवर्तन
  4.  खट्टी चीजें, चाक-मिट्टी खाने की इच्छा होना 
  5.  बार-बार पेषाब होना।

Prasav ka Samay  kya kare –

मासिक धर्म से प्रसूतिका अनुमान- प्रसव का अनुमानित दिन केवल अनुमानित ही होता है। यह आवश्यक नहीं कि ठीक इसी दिन प्रसव हो, यह समय कुछ आगे-पीछे हो सकता है। साधारणतः मासिक धर्म होने के बाद प्रसूतिका समय 270 से 290 दिन के अंदर होता है, उसे जानने के लिए निम्ररीति से दिनों की संख्या जोड़ दी जाय तो प्रसूति की कल्पना की जा सकती है- 

उदाहरण– यदि दस जनवरी को मासिक धर्म हुआ है तो उसमें 7 मिलाने से 17 अक्टूबर को प्रसूति होने का समय समझना चाहिए।
गर्भावस्था में तनाव से बचे- गर्भवती महिला यदि किसी प्रकार मानसिक तनाव में रहती है तो इसका सीधा असर  शिशु पर पड़ता है। इसलिये गर्भावस्था में स्त्रियों को प्रसन्न रहना चाहिये, ताकि बच्चा स्वस्थ हो। गर्भ में शिशु सचेतन प्राणी होता है तथा उसका अवचेतन मस्तिष्क उस अवधि की स्मृतियों को भलीभाँति संजोये रहता है। माता के संवेगों को वह जल्दी ही अपने अंदर समेट लेता है। गर्भवती को अपने शिशु के भविष्य के लिये प्रसन्न एवं आशावादी रहना चाहिये। 

Pregnancy Food – Garbhaavstha Me kya khaye kya nahi  –

  1. गर्भवती स्त्रियों का आहार- गर्भावस्था में शिशु अपने पोषण के लिये माँ पर निर्भर रहता है। इस दौरान माँ को सामान्य की अपेक्षा 300 कैलोरी से अधिक ऊर्जा का सेवन करना पड़ता है। अतः उसे विशेष ऊर्जा, शक्ति तथा पोषक तत्वों की आवश्यक पड़ती है। 
    कैल्शियम –  दूध, दूध से बने पदार्थ, अखरोट, बादाम, पिस्ता आदि। उपयोग:भ्रूण की हड्डियों एवं दाँतों के विकास के लिये जरूरी तत्व।
    आयरन– सूखे फल, हरी पत्तेदार सब्जियाँ, ताजे फल आदि। उपयोग:-भ्रूण में रक्त- कोषिकाओं के निर्माण के लिये बहुत आवश्यक ।
  2. विटामिन्स– ताजे फल, हरी सब्जियाँ, अंकुरित अनाज, सलाद आदि। उपयोग:- स्वस्थ प्लेसेन्टा (नाल) तथा आयरन के शोषण के लिये।
    फाॅलिक एसिड- हरी पत्तेदार सब्जियाँ, अनाज आदि। उपयोग:- बच्चे के स्नायु तन्त्र के विकास के लिये।
  3. जिंक- अनाज, दालें इत्यादि। उपयोग:- बच्चे के ऊतकों के विकास के लिये।
  4. कैल्शियम , फास्फोरस तथा विटामिन ‘डी’ प्राप्त करने के लिए ग्रहणी को चाहिये कि वह सिर पर तौलिया रखकर प्रतिदिन थोड़ी देर तक धूप लेती रहे। माता के शरीर में मात्र कैल्शियम की कमी होने के कारण बच्चों को सूखा रोग हो जाता है तथा उनके दाँत जीवन भर खराब रहते हैं। इसलिये गर्भवती महिला के आहार का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
  5. गर्भधारण के बाद प्रथम माह से नवम माह तक का खान-पान- गर्भवती महिला को गर्भ के नौ महीने के दौरान ऐसे खान-पान का सेवन करना चाहिये जो कि उसके स्वास्थ्य के अनुकूल हो। अगर गलत खान-पान की वजह से माँ को कोई तकलीफ होती है तो उसका बुरा असर गर्भ में पल रहे शिशु के स्वास्थ्य पर भी पड़ना निश्चित हैं। 

गर्भधारण के बाद 9 महीने तक क्या खाये

  1. 1st Month प्रथम माह- पहले महीने के दौरान गर्भवती को सुबह-शाम मिश्री मिला दूध पीना चाहिए। सुबह नास्ते में एक चम्मच मक्खन, एक चम्मच पिसी मिश्री और दो-तीन काली मिर्च मिलाकर चाट लें। उसके बाद नारियल की सफेद गरी के दो-तीन टुकड़े खूब चबा-चबाकर खा ले और अन्त में पाँच-दस ग्राम सौंफ खूब चबा-चबाकर खाये।
  2. 2 nd month (द्वितीय माह)- दूसरा महीना शुरू होने पर रोजाना दस ग्राम शतावार का बारीक पाउडर और पिसी मिश्री को दूध में डालकर उबालें। जब दूध थोड़ा गर्म रहे तो इसे घूँट-घूँट करके पी लें। पूरे माह सुबह और रात में सोने से पहले इसका सेवन करे।
  3. 3 rd month (तृतीय माह)- तीसरा महीना शुरू होने पर सुबह-शाम एक गिलास ठंडे किये गये दूध में एक चम्मच शुद्ध घी और तीन चम्मच शहद घोलकर पीये। इसके अलावा गर्भवती को तीसरे महीने से ही सोमघृत का सेवन शुरू कर देना चाहिए और आठवें महीने तक जारी रखना चाहिये।
  4. 4 th month (चतुर्थ माह)- चैथे महीने में दूध के साथ मक्खन का सेवन करे।
  5. 5 th month (पच्चम माह)- पाँचवें महीने में सुबह-शाम दूध के साथ एक चम्मच शुद्ध घी का सेवन करे।
  6. 6 th month (षष्ठ माह)- छठे महीने में भी शतावर का चूर्ण और पिसी मिश्री डालकर दूध उबालें, थोड़ा ठंडा करके पीये।
  7. 7 month (सप्तम माह)- सातवें महीने में छठे महीने की तरह ही दूध पीये, साथ ही सोमघृत का सेवन बराबर करती रहे।
  8. 8 th month (अष्टम माह)- आठवें महीने में भी दूध, घी, सोमघृत का सेवन जारी रखना चाहिए। साथ ही शाम को हल्का भोजन करे। इस महीने में गर्भवती को अक्सर कब्ज या गैस की शिकायत रहने लगती है, इसलिये तरल पदार्थ ज्यादा ले। यदि कब्ज फिर भी रहे तो रात में दूध के एक-दो चम्मच ईसबगोल ले।
  9. 9 th month नवम माह- नवें महीने में खान-पान का सेवन आठवें महीने की तरह ही रखे। बस इस महीने में सोमघृत का सेवन बिल्कुल बंद कर दें।

Garbhavstha – Pregnancy Me Work aur Exercise – 

गर्भावस्था में करने योग्य कार्य-

  1. गर्भावस्था के दौरान गर्भवती को अपना मन सदैव प्रसन्न रखना चाहिये।
  2. गर्भवती को अच्छे साहित्य का अवलोकन तथा महापुरूषों के जीवन-चरित्र के ऊँचे आदर्षों का चिन्तन-मनन करना चाहिए।
  3. गर्भकाल के दौरान सदा ढीले वस्त्र पहनना चाहिये। कसे वस्त्रों से बच्चे के विकलांग होने की सम्भावना बढ़ जाती है।
  4. गर्भवती महिला की दिनचर्या नियमित होनी चाहिये तथा घरेलू कार्यों को करते रहना चाहिये।
  5. ज्यादा समय खाली पेट नहीं रहना चाहिये। नियमित समय पर थोड़ी-थोड़ी मात्रा में भोजन ग्रहण करे।
  6. यदि गर्भवती महिला स्वयं को अस्वस्थ महसूस करती है तो थोड़ी मात्रा में किसी मीठी चीज का सेवन कर ले।
  7. तैलीय खाद्य पदार्थों का सेवन न करें।
  8. गर्भावस्था के दौरान संयम रखे, सहवास न करे।
  9. कोई भी दवा लेने से पूर्व चिकित्सक की सलाह ले।
  10. गर्भवती के स्तनों में कोई दोष हो तो इसका उपचार यथाषीघ्र करना चाहिये।

Garbhavstha – Pregnancy Exercise 

  1. व्यायाम- गर्भावस्था के दौरान अधिक थकान पैदा करने वाले व्यायाम, मेहनत के काम, उछलना-कूदना एकदम बंद कर देना चाहिये। सुबह-शाम खुली हवा में टहलना चाहिये।
  2. गर्भवती का डॅाक्टरी परीक्षण- गर्भधारण का पता चलने पर गर्भवती महिला को तुरंत स्त्री-रोग-विषेषज्ञ को दिखाना चाहिये। गर्भवती को प्रसव होने तक लगातार बार-बार जाँच करानी चाहिये। जिसमें शुरू के छः-सात महीनों में महीने में एक बार तथा सातवें, आठवें और नवें महीने में दस-पंद्रह दिन में एक बार जाँच करनी चाहिये। इन दिनों में ब्लडप्रेषर, खून-पेषाब आदि की जाँच समय≤ पर वह कराती रहे। गर्भवती को अपना वजन हर माह जाँच कराना चाहिये। गर्भकाल में आठ से दस किलो वजन बढ़ता है। यदि वजन अधिक होने लगे तो मीठा एवं चिकनाई युक्त आहार कम कर देना चाहिये।
  3.  इन नियमित जाँचों के दौरान चैथे-पाँचवें महीने में पहला और पाँचवें- छठे महीने में दूसरा (एक माह के अन्तर से) टिटनस/वैक्सीन का टीका अवष्य लगवा लेना चाहिये।
  4. इस तरह शुद्ध सात्त्विक जीवन बिताने वाली माताएँ स्वस्थ-सुन्दर और श्रेष्ठ बच्चे को जन्म दे सकती हैं।

नवप्रसूता के लिये स्वास्थ्य रक्षक नुस्खें

  1. सामान्यतः देखा जाता है कि महिलाएँ प्रसव के बाद अपना पूरा ध्यान शिशु की तरफ लगा देती है। अपनी शारीरिक देखभाल की ओर उनका ध्यान नहीं रहता है, जिससे वे कमजोर  हो जाती हैं। इस समय नवप्रसूता को उचित खान-पान तथा घरेलू उपचार से स्वस्थ एवं सुन्दर बनाया जा सकता है।
  2. प्रसव के समय गर्भवती स्त्री को गर्म दूध में 6-7 खारक (छुहारा) तथा केसर डालकर पिलाये। इससे प्रसव आसानी से कम कष्ट में होगा। इसके बाद 3 ग्राम हीराबोल का चूर्ण और 10 ग्राम गुड़ का मिश्रण बनाये, इसकी समान वजन की छः गोली बना लें। प्रसव के पश्चात् दो गोली प्रतिदिन तीन दिन तक सेवन कराये। इससे गर्भाशय की शुद्धि होती है।
  3. पीने का पानी- प्रसव के बाद प्रसूता को चालीस दिनों तक ठंडे पानी का सेवन नहीं करना चाहिये। ठंडे पानी का किसी भी रूप में उपयोग नही करना चाहिये। प्रसव के बाद पहले सप्ताह से निम्नलिखित विधि से पानी का सेवन करना चाहिये-
    पानी 5 लीटर, 5-6 गाँठ सोंठ, 5-7 लौंग तथा 50 ग्राम अजवाइन डालकर उबाल लें। ठंडा होने पर, छानकर किसी बरतन में भरकर रख दे। पहले आठ दिन इसी पानी का सेवन करना चाहिये। इसके बाद एक महीने सिर्फ गर्म पानी ठंडा करके पीये। इसके बाद ताजा पानी शुरू कर दें। 
    यदि हो सके तो प्रसूता को 10 दिन तक तो अन्न का सेवन नही करना चाहिये। हरीरा और गर्म दूध देना चाहिये। मेवे का हलुवा भी दे सकते हैं। ग्यारहवें दिन से अन्न का सेवन शुरू करे।
  4. हरीरा बनाने के लिये सामग्री- 200 ग्राम अजवाइन, 100 ग्राम सोंठ, 10 ग्राम पीपल, 10 ग्राम पीपलामूल, 100 ग्राम बादाम, 200 ग्राम छुहारा, 200ग्राम गोंद तथा आवश्यकतानुसार शुद्ध घी एवं गुड़ ले। 
    हरीरा बनाने की विधि- अजवाइन, सोंठ, पीपल तथा पीपलामूल को कूटकर अलग रख लें। बादाम, खारक (छुहारा) तथा मेवा काटकर रख लें। समस्त सामग्री को दस भागों में करके पुड़िया बना ले। एक पुड़िया प्रतिदिन उपयोग में लाये। 
    सर्वप्रथम कड़ाही में घी डालकर 20 ग्राम गोंद तले, इसके पष्चात् पहली चारों चीजों की एक-एक पुड़िया डालकर भूने, उसमें अंदाज से गुड़ डालकर चलाये। अब दो कप पानी डाले। थोड़ा गाढ़ा होने पर पिसी गोंद और मेवा डालकर आँच से नीचे उतारे। हरीरा गर्म दूध के साथ सेवन करें।
  5. भोजन- भोजन में हरी सब्जी, मूँग की दाल और चपाती देना चाहिये। पाँच गाँठ सोंइ तथा बीस लौंग पीसकर शीषी में रख लें, भोजन करते समय दाल-सब्जी में यह चूर्ण डाल दे। सुबह-षाम लड्डू खाने के एक घंटे तक पानी का सेवन नहीं करना चाहिये। खाना खाने के बाद भुनी हींग का सेवन करना चाहिये। 

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