पेनलेस नार्मल डिलीवरी के लिए क्या करना चाहिए – Pregnancy Tips For Normal Delivery


पेनलेस नार्मल डिलीवरी के लिए क्या करना चाहिए – Pregnancy Tips For Normal Delivery


गर्भावस्था एक ऐसी अवधि है जिसमें हर महिला चाहती है कि उसकी डिलिवरी दर्दरहित और सामान्य हो। ‘पेनलेस नार्मल  डिलीवरी ‘ एक ऐसा मुद्दा है जो आजकल कई महिलाओं के लिए प्राथमिकता बन चुका है। इसका मुख्य कारण है, उन्हें अपने बच्चे को स्वाभाविक तरीके से जन्म देने की ख्वाहिश होती है। इस लेख में, हम देखेंगे कि कैसे आप अपनी गर्भावस्था को सही दिशा में लेजाकर दर्दरहित सामान्य प्रसव का अनुभव कर सकती हैं। यहाँ विशेषज्ञों द्वारा सुझाए गए तरीकों और उपचारों को जानना आपकी मदद करेगा जो आपको और आपके होने वाले शिशु को स्वस्थ बनाए रखने में सहायक होंगे।

गर्भावस्था और शिशु की देखभाल: गर्भावस्था के समय, महिला को खुद और आने वाले शिशु की विशेष देखभाल करनी चाहिए। शिशु का सही विकास हो रहा है या नहीं, इस पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है।

मोटापा: गर्भावस्था की चुनौती: मोटापा गर्भावस्था में एक विशेष समस्या हो सकती है। अधिक वजन के कारण महिलाओं का मन में डर रहता है कि क्या वे सामान्य प्रसव पा सकेंगी? क्या बच्चा स्वस्थ पैदा होगा?

विशेषज्ञ की सलाह: मोटी महिलाओं के लिए डॉक्टर की सलाह जरूरी है। खाने से वजन बढ़ने वाली महिलाएं, विशेष रूप से हार्मोन असंतुलन के कारण, नियमित रूप से डॉक्टर की जाँच कराएं ताकि प्रसव के समय कोई समस्या न हो।

शारीरिक व्यायाम और योग: शारीरिक व्यायाम को पूरी तरह नहीं छोड़ना चाहिए। गर्भावस्था में योग सबसे सुरक्षित और लाभकारी हो सकता है, जो चुस्ती-फुर्ती बनाए रखता है। पद्मासन, भद्रासन आदि, गर्भावस्था के लिए फायदेमंद हो सकते हैं।

सही मुद्रा और आराम: गर्भावस्था में, सही चाल-चलन और उठने-बैठने की सही मुद्रा जरूरी है, ताकि शरीर का फिगर नहीं खराब हो और कमर दर्द जैसी परेशानियां न हों। इसके लिए डॉक्टर से समय-समय पर परामर्श करें।

इस तरह, गर्भावस्था और मोटापा के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए सही मार्गदर्शन और जीवनशैली का पालन करना चाहिए। यह आपको बिना दर्द की सामान्य प्रसव की ओर ले जाएगा, जो हर माँ की इच्छा होती है।

उपाय

  1. प्रीनेटल योग और व्यायाम: गर्भावस्था के दौरान नियमित रूप से योग और हल्के व्यायाम करने से शरीर लचीला और मजबूत बनता है, जो नॉर्मल डिलीवरी में मदद करता है।

  2. लेबर और डिलीवरी की तैयारी: लेबर और डिलीवरी के बारे में जानकारी और तैयारी, जैसे कि लेबर पेन मैनेजमेंट की कक्षाएं, तनाव को कम करने और दर्द को सहन करने में मदद करती हैं।

  3. सांस लेने की तकनीकें: गहरी सांस लेने और ध्यान की तकनीकें दर्द को कम करने और शांति प्रदान करने में सहायक होती हैं।

  4. वॉटर बर्थ: कुछ महिलाएं वॉटर बर्थ का चयन करती हैं, जहां पानी में रहने से दर्द कम महसूस होता है।

  5. एपिड्यूरल एनेस्थीसिया: यह एक प्रकार का दर्द निवारक उपचार है जो लेबर के दौरान दर्द को कम करता है। यह रीढ़ की हड्डी में दिया जाता है और निचले शरीर में दर्द को कम करता है।

  6. अच्छा पोषण और हाइड्रेशन: संतुलित आहार और पर्याप्त पानी पीने से शरीर स्वस्थ रहता है, जो लेबर के दौरान मददगार होता है।

  7. मालिश और रिलैक्सेशन तकनीकें: लेबर के दौरान मालिश और आराम करने की तकनीकें भी दर्द को कम करने में सहायक होती हैं।

साइड इफेक्ट्स:

  1. एपिड्यूरल एनेस्थीसिया: इससे कभी-कभी पीठ में दर्द, सिरदर्द या रीढ़ की हड्डी में जटिलताएं हो सकती हैं।

  2. प्रीनेटल योग और व्यायाम: अगर गलत तरीके से किया जाए तो चोट लगने का जोखिम होता है।

  3. सांस लेने की तकनीकें: कुछ महिलाओं को इन तकनीकों को सही तरीके से सीखने में कठिनाई हो सकती है।

  4. वॉटर बर्थ: इसमें संक्रमण का जोखिम हो सकता है, और सभी अस्पतालों में यह विकल्प उपलब्ध नहीं होता।

पेनलेस नार्मल डिलीवरी के लिए क्या खाये ? क्या न खाये ?

गर्भावस्था का समय महिला के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण और संवेदनशील समय होता है। इस अवस्था में सही आहार का सेवन करना न सिर्फ गर्भवती महिला के लिए बल्कि गर्भस्थ शिशु के विकास के लिए भी महत्वपूर्ण होता है। यहाँ हम विवरण में जानेंगे कि नॉर्मल डिलिवरी के लिए क्या खाना चाहिए और क्या नहीं:

नॉर्मल डिलिवरी के लिए क्या खाएं:

  1. फल और सब्जियां: ताजा फल और सब्जियाँ से विटामिन और मिनरल्स की जरूरत पूरी होती है, जो गर्भवती महिला को सेहतमंद रखते हैं।
  2. प्रोटीन युक्त भोजन: दाल, पनीर, अंडा जैसे प्रोटीन से भरपूर खुराक गर्भवती महिला के लिए फायदेमंद होती है।
  3. जल: पर्याप्त मात्रा में पानी पीने से शरीर की हाइड्रेशन को बनाए रखना चाहिए।
  4. विटामिन और मिनरल्स: डॉक्टर द्वारा दी गई विटामिन और आयरन की गोलियां नियमित रूप से लें।
  5. संतुलित आहार: शरीर की बढ़ोतरी जरूरतों को पूरा करने के लिए संतुलित आहार लें।

नॉर्मल डिलिवरी के लिए क्या ना खाएं:

  1. तला हुआ खाना: अधिक वसा वाला भोजन से बचें, जैसे कि समोसा, भजी हुई सब्जियाँ।
  2. ज्यादा मिर्च मसालेदार खाना: ज्यादा मसालेदार और तीखा खाना पेट की समस्याएं पैदा कर सकता है।
  3. कैफीन: अधिक मात्रा में चाय, कॉफी से बचें।
  4. शराब और धूम्रपान: शराब और तंबाकू से पूरी तरह से दूर रहें।
  5. औषधियां और विटामिन: किसी भी औषधि या विटामिन का सेवन करने से पहले डॉक्टर की सलाह अवश्य लें।
  6. अधिक वजन ना उठाएं: गर्भावस्था के दौरान अधिक वजन उठाना हानिकारक हो सकता है।
  7. नियमित चेकअप: नियमित रूप से डॉक्टर की जाँच करवाएं ताकि किसी भी समस्या का समय रहते पता चल सके।
  8. नमक का प्रयोग: गर्भवती महिलाएं नमक का सेवन कम कर दें, और तली हुई चीजों और अचार से परहेज करें। उच्च रक्तचाप होने पर नमक की मात्रा और भी कम कर दें।
  9. तंबाकू और शराब से दूर रहें: धूम्रपान और शराब गर्भस्थ शिशु के विकास पर बुरा प्रभाव डाल सकते हैं।
  10. तीखा और मसालेदार भोजन से बचें: पेट की समस्याओं को रोकने के लिए अत्यधिक मसालेदार भोजन से बचें।
  11. मानसिक शांति बनाएं रखें: तनाव और चिंता से दूर रहें और पॉजिटिव रहें।
  12. यात्रा से सम्बंधित सावधानियां: दूर की यात्राओं में जाने से पहले डॉक्टर की सलाह अवश्य लें।
  13. व्यायाम: गर्भावस्था के दौरान व्यायाम करना आवश्यक है, लेकिन ध्यान रखें कि आप अत्यधिक ना थकें और पेट पर अनावश्यक दबाव नहीं डालें। व्यायाम शरीर और मन को ताजगी देता है, और शिशु के स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद होता ह
  14. उलटी की समस्या: गर्भावस्था के दौरान उलटियों की समस्या होने पर विशेष ध्यान दें।
  15. पानी और तरल पदार्थ: प्रतिदिन 6 से 12 गिलास पानी और तरल पदार्थों का सेवन करें।
  16. आयरनयुक्त भोजन: हरी सब्जियाँ, साबुत अनाज जैसे आयरन युक्त खुराक का प्रयोग करें।
  17. विटामिन-सी युक्त भोजन: संतरा, मौसमी, नींबू, आँवला, अमरूद आदि सेवन करें।
  18. कैफीन से परहेज: चाय, कॉफी जैसे कैफीन युक्त पदार्थों का सेवन कम करें।
  19. कैल्षियम का सेवन: दूध और दूध से बने पदार्थों को अपनी डाइट में शामिल करें।

गर्भावस्था में सही आहार का सेवन करना नॉर्मल डिलिवरी की संभावना को बढ़ाता है। सही आहार और व्यायाम की जरूरी जानकारी प्राप्त करने के लिए अपने डॉक्टर से सम्पर्क करें। आपकी सेहत ही आपके बच्चे की सेहत है, इसलिए ध्यान दें और स्वस्थ रहें।

गर्भवती महिलाओं को अपनी डाइटीषियन की सलाह पर अपना डाइट चार्ट बनाना चाहिए। डाइट चार्ट महिला की लंबाई, वजन और यदि उसे उच्च रक्त चाप, मधुमेह आदि जैसी कोई बीमारी हो आदि को भी ध्यान में रखकर ही बनाएँ जिससे डिलीवरी आसानी से हो और बच्चा स्वस्थ पैदा हो। अधिक वजन वाली गर्भवती संतुलित भोजन ग्रहण करें।

पेनलेस नार्मल डिलीवरी के लिये गर्भावस्था के दौरान सावधानियां

  1. मांस: कच्चा या अधूरा पका हुआ मांस खाने से बचें, क्योंकि इसमें कोलीफॉर्म बैक्टीरिया हो सकते हैं जो गर्भावस्था के दौरान खतरनाक सिद्ध हो सकते हैं।
  2. पपीता: अर्ध पका हुआ पपीता खाने से बचें। इसमें लेटेक्स होता है जो गर्भाषय के संकुचन का कारण बन सकता है और समस्या पैदा कर सकता है।
  3. फल और सब्जियाँ: गर्भावस्था के दौरान फल और सब्जियां खाने से पहले उन्हें अच्छी तरह से धो लें। इससे टोक्सोप्लाजमा जैसे परजीवियों से बचा जा सकता है, जो गर्भवती महिला और शिशु के लिए हानिकारक हो सकते हैं।
  4. धूम्रपानधूम्रपान से आपके शरीर में कैमिकल प्रवेष कर जाते है। धूम्रपान केवल आपके लिए ही बुरा नही है बल्कि यह आपके होने वाले बच्चे के लिए भी काफी खतरनाक है। इससे बच्चे की सेहत को काफी नुकसान हो सकता है। उसे अन्य गम्भीर बीमारियाँ भी हो सकती है।
  5. जब स्त्री को यह पता चल जाए कि वह गर्भवती हो गई है, तो वह आवष्यक व्यायाम करना प्रारम्भ कर दें। इतना ध्यान अवष्य रखें कि अत्यधिक थकान ना हो तथा पेट पर अनावष्यक दबाव ना पड़े।
  6. गर्भावस्था में व्यायाम बेहद आवष्यक व महत्त्वपूर्ण हैं। इनके माध्यम से प्रसवकाल की पीड़ा को तो सरल बनाया ही जा सकता है। साथ ही साथ बच्चा भी स्वस्थ व सुन्दर रहता है। गर्भावस्था के दौरान व्यायाम करने से मन की मानसिक स्थिति बेहतर होती है और शरीर में आॅक्सीजन के स्तर में भी सुधार होता है ऐसा शिशु के लिए फायदेमंद होता है।

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गर्भावस्था के दौरान व्यायाम

गर्भावस्था के दौरान व्यायाम करने का आसान तरीका बताया गया है:

  • खड़े रहें और हाथ बाँधें: पंजों के बल खड़े हो जाएं और हाथों को पीछे खींचें।
  • एक पैर आगे बढ़ाएं: बायाँ पैर आगे बढ़ाते हुए दायें हाथ से दूसरे पैर के घुटने को छूने की कोशिश करें।
  • ध्यान रखें: बायीं ओर से पेट बाहर नहीं निकलना चाहिए।
  • पैरों को खोलें: दोनों पैरों को थोड़ी बायीं ओर खोलें।
  • एक पैर पीछे ले जाएं: बायाँ पैर को धीरे से पीछे ले जाएं।
  • हाथ ऊपर उठाएं: दाएँ हाथ को धीरे से ऊपर उठाएं।

ध्यान दें: इस व्यायाम को धीरे और सावधानी से करें। अगर आपको कहीं भी दर्द या असहजता महसूस हो, तो तुरंत रुक जाएं और चिकित्सक की सलाह लें। ऐसे व्यायाम को विशेषज्ञ की देखरेख में करना हमेशा सबसे अच्छा होता है।

गर्भावस्था के दौरान विश्राम और नींद का महत्व समझते हैं:

  • प्रारंभिक दिन: गर्भावस्था की शुरुआती दिनों में अधिक नींद आना सामान्य होता है, जो धीरे-धीरे कम होता जाता है।
  • मध्य अवधि: इस समय नींद की मात्रा सामान्य हो जाती है।
  • अंतिम महीने: पेट के बढ़ जाने से सोने में दिक्कत हो सकती है। शिशु की हरकतें भी नींद को बाधित कर सकती हैं।

नींद का महत्व: गर्भावस्था में शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए नींद और विश्राम अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।

व्यायाम का प्रभाव: जो महिलाएं नियमित व्यायाम करती हैं, उन्हें नींद संबंधित समस्याएं कम होती हैं।

सही समय का चयन: स्नान और दोपहर के भोजन से पहले का समय नींद के लिए श्रेष्ठ माना जाता है। इस समय की नींद शरीर को ताजगी प्रदान करती है।

गर्भावस्था में उचित विश्राम और नींद गर्भवती माँ और होने वाले शिशु के स्वास्थ्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण होती है, इसलिए इसे पूरी तरह से पालन करना चाहिए।

बिना दर्द की सामान्य प्रसव (Painless Normal Delivery) के लक्षण

1. गर्भाशय की मासपेशियाँ संकुचित होना (Uterine Contractions):

गर्भावस्था के आखिरी चरण में, कई महिलाएं गर्भाशय की मासपेशियों में नियमित संकुचन महसूस कर सकती हैं। यह संकुचन शुरू में कुछ समय के लिए होते हैं और धीरे-धीरे समय के साथ अधिक नियमित और तीव्र होते जाते हैं।

यह संकुचन गर्भाशय को बच्चे को बाहर निकालने की तैयारी में मदद करते हैं। इसे “लेबर पेन” भी कहा जाता है, और यह सामान्य प्रसव की एक प्रमुख पहचान होती है। यह संकुचन शरीर के अन्य हिस्सों में भी महसूस हो सकता है, जैसे कि कमर और जाँघ।

यदि यह संकुचन नियमित होते जाएं और दर्द बढ़ता जाए, तो यह संकेत देता है कि प्रसव की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। ऐसी स्थिति में, तुरंत चिकित्सक से सम्पर्क करना चाहिए, ताकि वे सही समय पर और सुरक्षित तरीके से सामान्य प्रसव की देखभाल कर सकें।

2. पानी टूटना (Water Breaking):

गर्भावस्था के अंतिम चरण में, गर्भाशय का पानी टूटना सामान्य प्रसव की ओर एक महत्वपूर्ण सूचक होता है। यह पानी वास्तव में गर्भाशय की जिली होती है, जिसमें शिशु पूरी गर्भावस्था के दौरान रहता है।

जब यह जिली टूट जाती है, तो इसे ‘पानी टूटना’ कहा जाता है, और इसे शिशु की जन्म की ओर एक महत्वपूर्ण कदम माना जाता है। इस प्रक्रिया के बाद, प्रसव की प्रक्रिया तेजी से बढ़ सकती है, और इसलिए यह महत्वपूर्ण होता है कि महिला तुरंत चिकित्सक की देखरेख में हो।

पानी टूटने का अनुभव विभिन्न महिलाओं के लिए विभिन्न हो सकता है। कुछ महिलाओं के लिए यह एक धारा की तरह हो सकता है, जबकि दूसरों के लिए यह केवल थोड़ी सी गीली हो सकती है। यह संकेत देता है कि शिशु का जन्म होने वाला है, और महिला को तुरंत अस्पताल जाना चाहिए।

3. पीठ दर्द (Back Pain):

प्रसव के दौरान पीठ दर्द का अनुभव करना सामान्य होता है, और यह सामान्य प्रसव की ओर इशारा कर सकता है। यह दर्द गर्भाशय की संकुचन से उत्पन्न होता है जो शिशु को जन्म देने की प्रक्रिया को शुरू करता है।

इस दर्द का अनुभव कुछ महिलाओं के लिए अधिक तीव्र हो सकता है, जबकि कुछ के लिए यह हल्का हो सकता है। पीठ दर्द का स्तर बदल सकता है और यह समय समय पर बढ़ या घट सकता है।

यह महिलाएं जो पहली बार माँ बन रही होती हैं, उन्हें अधिक महसूस हो सकता है, क्योंकि उनके शरीर में हो रहे परिवर्तन नए होते हैं। पीठ दर्द से निपटने के लिए, ठोस आराम, सही मुद्रा, और शारीरिक व्यायाम जैसे स्ट्रेचिंग, सहायक हो सकते हैं।

यदि दर्द असहनीय होता है तो तुरंत चिकित्सक की सलाह लेना महत्वपूर्ण है, ताकि वे दर्द के कारण को समझ सकें और उचित उपचार प्रदान कर सकें।

4. निचले हिस्से में दबाव (Pressure in the Lower Part):

गर्भावस्था के अंतिम चरणों में, विशेषकर प्रसव के कुछ समय पहले, महिला को अपने गर्भाशय के निचले हिस्से में दबाव महसूस हो सकता है। यह दबाव शिशु के सिर का गर्भाशय की मुख की ओर बढ़ना होता है, जो प्रसव की ओर एक स्पष्ट इशारा होता है।

यह दबाव शिशु की स्थिति और गर्भाशय की तैयारी के कारण होता है, और यह विभिन्न महिलाओं के लिए विभिन्न तरीकों से महसूस किया जा सकता है। कुछ महिलाओं को यह एक हल्का दबाव की तरह महसूस हो सकता है, जबकि दूसरों को यह अधिक स्पष्ट और तीव्र हो सकता है।

निचले हिस्से में दबाव का अनुभव वास्तव में एक अच्छा संकेत होता है, जो दर्शाता है कि शिशु सही दिशा में है और प्रसव की प्रक्रिया शुरू होने वाली है। ऐसे में, चिकित्सक से सम्पर्क करना और नियमित चेकअप कराना महत्वपूर्ण हो सकता है ताकि प्रसव की पूरी प्रक्रिया सुचारू रूप से हो सके।

5. थकान (Fatigue):

प्रसव के समय अधिक थकान महसूस होना सामान्य होता है। शरीर बच्चे को जन्म देने की प्रक्रिया के लिए तैयारी कर रहा होता है, और इसलिए ऊर्जा की अधिक खपत हो सकती है। सही आराम और पोषण से शरीर को ऊर्जा मिलती है, जो प्रसव की प्रक्रिया के लिए आवश्यक होती है।

6. रक्तस्राव (Bloody Discharge):

गर्भावस्था के अंतिम चरणों में, विशेषकर बच्चे के जन्म की तारीख के नजदीक, रक्तस्राव जैसा लक्षण देखा जा सकता है। यह “मुकस प्लग” कहलाता है, जो गर्भाशय की मुख को बंद करता है और जब वह खुलता है, तो एक थोड़ी सी रक्तमिश्रित स्राव निकल सकती है।

यह एक सामान्य प्रसव के लक्षण का संकेत हो सकता है, और आमतौर पर चिंता की कोई बात नहीं होती है, लेकिन यह हमेशा चिकित्सक की निगरानी में होना चाहिए। अगर रक्तस्राव अधिक हो तो तुरंत चिकित्सक से सम्पर्क करना चाहिए, क्योंकि यह किसी समस्या का संकेत हो सकता है।

इन लक्षणों का सही समय पर पहचानना और उन्हें समझना महत्वपूर्ण होता है, ताकि गर्भवती महिला को सही देखभाल और समर्थन मिल सके, और प्रसव की पूरी प्रक्रिया सुचारू रूप से हो सके।

7. स्तन में बदलाव (Changes in Breasts):

गर्भावस्था के दौरान और विशेषकर उसके अंतिम चरणों में, स्तनों में बदलाव होना एक सामान्य प्रक्रिया होती है। स्तन बढ़ सकते हैं, और उनमें दर्द भी हो सकता है। यह शरीर को दूध का निर्माण करने की ओर तैयार करता है, ताकि नवजात शिशु को पोषण मिल सके।

8. श्वसन में बदलाव (Changes in Breathing):

धीमी और गहरी सांस लेना भी प्रसव के लक्षणों में से एक हो सकता है। जैसे-जैसे गर्भाशय बढ़ता है, वह फेफड़ों पर दबाव डाल सकता है, जिससे श्वसन में बदलाव आ सकता है। शरीर बच्चे को जन्म देने की ओर तैयार कर रहा होता है, और इसलिए श्वसन तंत्र भी इसी प्रकार से समायोजित होता है।

ये लक्षण शरीर के अंदर हो रहे बदलावों और तैयारियों का हिस्सा होते हैं, जो प्रसव की प्रक्रिया को सुचारू बनाने के लिए होती हैं। यह लक्षण सामान्य होते हैं, लेकिन फिर भी किसी भी असामान्य स्थिति या समस्या को देखते हुए, चिकित्सक से सलाह लेना महत्वपूर्ण होता है।

11. बच्चे की गति में बदलाव (Changes in Baby’s Movement):

गर्भावस्था के दौरान बच्चे की गति में बदलाव एक सामान्य घटना है। बच्चे की अधिक गति या धीमी गति, शरीर की बदलती स्थितियों और बच्चे की विकास और निकटतम जन्म की ओर इशारा कर सकती है।

12. अत्यधिक थकान और निद्रा (Increased Fatigue and Sleepiness):

गर्भावस्था के अंतिम चरणों में शरीर की अधिक थकान और निद्रा महसूस होना सामान्य हो सकता है। शरीर अधिक विश्राम चाहता है ताकि वह प्रसव के लिए पूरी तरह से तैयार हो सके। यह शरीर को विश्राम और प्रसव की ओर तैयारी देती है।

ये लक्षण बच्चे के जन्म की तैयारियों का हिस्सा होते हैं। फिर भी, यदि आपको इन लक्षणों में से कुछ भी असामान्य लगता है तो तुरंत अपने चिकित्सक से परामर्श करें, क्योंकि प्रत्येक गर्भावस्था अद्वितीय होती है और व्यक्तिगत ध्यान की आवश्यकता हो सकती है।

13. पेट का निचले हिस्से में उतरना (Lightening):

इस लक्षण को “Lightening” भी कहा जाता है। जब बच्चा पेड़ू के निचले हिस्से में उतरता है, तो यह संकेत देता है कि प्रसव निकट है। महिला को श्वास लेने में आसानी हो सकती है, लेकिन पैरों और पेड़ू में दबाव बढ़ सकता है।

14. अचानक वजन कमी (Sudden Weight Loss):

जन्म से पहले कुछ दिनों में 1-2 किलो वजन कम होना भी सामान्य प्रसव का संकेत हो सकता है। यह अम्नियोटिक द्रव की कमी और हार्मोन के स्तर में परिवर्तन के कारण हो सकता है।

ये लक्षण बच्चे के जन्म की तारीख के नजदीक होने का संकेत देते हैं। यदि आपको इनमें से कोई भी असामान्य लगे तो तुरंत अपने हेल्थकेयर प्रदाता से संपर्क करें। वे आपकी स्थिति का मूल्यांकन कर सकते हैं और आपको सही मार्गदर्शन दे सकते हैं।

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