Treatment with Drinking Water (Pani in Hindi)

पानी से कर सकते हैं इन बीमारियों का इलाज- यहां जाने पानी के आसान प्रयोग !

जल जीवन का आधार है। शरीर में जल का अभाव न हो इसके लिए 3 किलोग्राम जल नित्य सेवन करते रहना चाहिए। भले ही मनुष्य भोजन के बिना कुछ समय तक रह सकता है। लेकिन जल के बिना वह कुछ घंटों भी नहीं रह सकता।
गर्मी के मौसम में पसीना अधिक आता है और पसीने के माध्यम से जल भी शरीर से बाहर निकलता है। यही कारण है कि गर्मी में अधिक प्यास लगती है। जल हाइड्रोजन व ऑक्सीजन का यौगिक है। ऑक्सीजन की पूर्ति का उत्तम माध्यम जल है। जितना अधिक जल ग्रहण किया जाएगा,  उतने ही रोगों से बचा रहा जा सकता है। जल सुन्दरता का भी कारक है। 
प्यास लगने पर गटागट जल को नही पीना चाहिए, क्योंकि शरीर में एक साथ पहुंचा जल हानि पहुंचाता है। लेकिन यह भी तथ्य है कि जल की पूर्ति केवल जल से ही संभव है। जल के स्थान पर शीतल पेय पीकर कोई यह समझे कि उसकी प्यास बुझ जाएगी तो यह उसका भ्रम है। प्यास केवल जल से ही बुझ सकती है। 

जल का प्रभाव

  1. जल भोजन को पचाने का काम करता है।
  2. जल सेवन से शरीर का ताप सुव्यवस्थित रहता है।
  3. शरीर को स्वस्थ रखने के लिए नित्य जल से स्नान करना अति आवष्यक है।
  4. आंतों की स्वच्छता के लिए भी अधिक जल सेवन करना आवष्यक है।
  5. एनिमा के माध्यम से शरीर के अन्दर जल छोड़ने से मल का उत्सर्जन होता है। 

जल को शुद्ध करना-

नल, कुएं आदि से प्राप्त जल को छानकर गर्म करें। इससे जल में विद्यमान कीटाणु नष्ट हो जाते हैं। जल शुद्धि के लिए क्लोरिन आदि का भी उपयोग किया जा सकता है।

स्वस्थता के लिए जल-

 नित्य 8-10 गिलास जल सेवन करते रहने से व्यक्ति स्वस्थ रहता है। इसी तरह जल स्नान से शरीर का ताप कम होकर भूख लग होती है। 

विविध रोगों में जल का प्रयोग निम्नानुसार करना चाहिए-

  1. रात में तांबे के बर्तन में जल को भरकर रख दें। प्रातः सूर्योदय से पहले रात का वह बासी जल पीकर टहलें। कितनी ही पुरानी कब्ज हो, दूर हो जाएगी। इससे नेत्र, उदर, मूत्रादि के विकार भी दूर होते हैं।
  2. तांबे का जल नाक से पिएं तो षिरोषूल, जुकाम, नजला, नकसीर आदि रोग दूर होते है। इससे नेत्र ज्योति बढ़ती है।
  3. तांबे के पात्र का जल नित्य निष्चित मात्रा में सेवन करने से समय से पहले बालों का सफेद होना रूकता है।
  4. ताम्रपात्र के जल सेवन से न केवल सामान्य रोग जैसे कैंसर, मासिक स्त्राव का अनियमित होना, पेचिष, लकवा, मधुमेह, रक्तचाप, कब्ज जैसे रोग भी ठीक होते हैं।
  5. जोड़ों के दर्द व वात रोग की निवृत्ति के लिए प्रातः उठकर चार बड़े गिलास जल नित्य सेवन करना चाहिए (कम से कम एक सप्ताह तक) उसके बाद एक सप्ताह में एक बार सेवन करें।
  6. हरे रंग की बोतल में तीन चौथाई सामान्य जल भरकर धूप में रख दें (कम से कम सात-आठ घंटे तक)। इस जल का सेवन करने से पुरानी कब्ज भी दूर हो जाती है। यह जल आधा-आधा कप दिन में नित्य तीस बार लेना चाहिए।
  7. एक गिलास गुनगुने जल में नमक मिलाकर एक साथ पी जाएं। यह जल बिना रूके पिएं। जब उबकाई आने लगे तो पीना बंद कर दें। फिर मुंह में उंगली डालकर वमन कर दें। ऐसा दस-पन्द्रह दिन में एक बार करें।
  8. एक टब में पानी भरकर कमर वाला भाग उसमें डुबो दें। इस स्नान को करने से यकृत, प्लीहा, जठर आदि रोगों का निवारण होता है। इसी तरह रीढ़ स्नान भी किया जा सकता है।
  9. कुर्सी पर बैठकर दोनों पैर जल भरे टब या बाल्टी में डुबों दें। ऐसा करने से शरीर के ऊपरी भाग में जमा रक्त प्रवाहित होने लगेगा।  

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