एक क्लिक में शिव चालीसा: सीधे, सरल और सुगम तरीके से भगवान शिव की भक्ति में लीन हों


शिव चालीसा हिन्दू धर्म की एक महत्वपूर्ण भक्तिपूर्ण कृति है, जिसे भगवान शिव की प्रशंसा और उनके विविध रूपों और कार्यों की महिमा गाने के लिए रचा गया है। यहाँ शिव चालीसा के बारे में कुछ मुख्य बातें हैं:

  1. रचना: शिव चालीसा में कुल 40 छंद होते हैं, इसलिए इसे ‘चालीसा’ कहा जाता है। यह ‘चालीसा’ शब्द ‘चालीस’ से आया है, जिसका अर्थ होता है 40।
  2. प्रारंभ: यह चालीसा गणेश जी की प्रशंसा से प्रारंभ होता है, जो विघ्नहर्ता हैं। इसके बाद शिव जी की विविध प्रशंसाओं का वर्णन होता है।
  3. विविध रूप और गाथाएं: चालीसा में शिव जी के विविध रूपों, उनके पर्वती जी के प्रति प्रेम, गंगा जी के सिर पर बहने की कथा, तथा उनके अन्य अद्भुत कार्यों का वर्णन है।
  4. भक्त की प्रार्थना: चालीसा का सार एक साधक और भक्त की प्रार्थना है कि शिव जी उसकी रक्षा करें, उसकी मनोकामनाओं को पूरा करें और उसे मोक्ष प्राप्त कराएं।
  5. पाठ का महत्व: यह माना जाता है कि शिव चालीसा का नियमित पाठ करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है और वह संकटों से मुक्ति पाता है।

आमतौर पर, शिव चालीसा का पाठ सोमवार को किया जाता है, क्योंकि यह दिन शिव जी को समर्पित होता है। यह भक्तिपूर्ण गीत भक्तों को शिव जी के साथ एक गहरे संबंध में लाता है और उन्हें अपने जीवन में संकटों से मुक्ति और आत्मिक उन्नति की प्राप्ति में मदद करता है।

जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान । कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान ॥

॥ चौपाई ॥

जय गिरिजा पति दीन दयाला । सदा करत सन्तन प्रतिपाला ॥

भाल चन्द्रमा सोहत नीके । कानन कुण्डल नागफनी के ॥

अंग गौर शिर गंग बहाये । मुण्डमाल तन क्षार लगाए ॥

वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे । छवि को देखि नाग मन मोहे ॥

मैना मातु की हवे दुलारी । बाम अंग सोहत छवि न्यारी ॥

कर त्रिशूल सोहत छवि भारी । करत सदा शत्रुन क्षयकारी ॥

नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे । सागर मध्य कमल हैं जैसे ॥

कार्तिक श्याम और गणराऊ । या छवि को कहि जात न काऊ ॥

देवन जबहीं जाय पुकारा । तब ही दुख प्रभु आप निवारा ॥

किया उपद्रव तारक भारी । देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी ॥

तुरत षडानन आप पठायउ । लवनिमेष महँ मारि गिरायउ ॥

आप जलंधर असुर संहारा । सुयश तुम्हार विदित संसारा ॥त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई । सबहिं कृपा कर लीन बचाई ॥

किया तपहिं भागीरथ भारी । पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी ॥

दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं । सेवक स्तुति करत सदाहीं ॥

वेद नाम महिमा तव गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई ॥

प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला । जरत सुरासुर भए विहाला ॥

कीन्ही दया तहं करी सहाई । नीलकण्ठ तब नाम कहाई ॥

पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा । जीत के लंक विभीषण दीन्हा ॥

सहस कमल में हो रहे धारी । कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी ॥

एक कमल प्रभु राखेउ जोई । कमल नयन पूजन चहं सोई ॥

कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर । भए प्रसन्न दिए इच्छित वर ॥

जय जय जय अनन्त अविनाशी । करत कृपा सब के घटवासी ॥

दुष्ट सकल नित मोहि सतावै । भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै ॥

त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो । येहि अवसर मोहि आन उबारो ॥

लै त्रिशूल शत्रुन को मारो । संकट से मोहि आन उबारो ॥

मात-पिता भ्राता सब होई । संकट में पूछत नहिं कोई ॥

स्वामी एक है आस तुम्हारी । आय हरहु मम संकट भारी ॥

धन निर्धन को देत सदा हीं । जो कोई जांचे सो फल पाहीं ॥

अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी । क्षमहु नाथ अब चूक हमारी ॥

शंकर हो संकट के नाशन । मंगल कारण विघ्न विनाशन ॥

योगी यति मुनि ध्यान लगावैं । शारद नारद शीश नवावैं ॥

नमो नमो जय नमः शिवाय । सुर ब्रह्मादिक पार न पाय ॥

जो यह पाठ करे मन लाई । ता पर होत है शम्भु सहाई ॥

ॠनियां जो कोई हो अधिकारी । पाठ करे सो पावन हारी ॥

पुत्र हीन कर इच्छा जोई । निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई ॥

पण्डित त्रयोदशी को लावे । ध्यान पूर्वक होम करावे ॥

त्रयोदशी व्रत करै हमेशा । ताके तन नहीं रहै कलेशा ॥

धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे । शंकर सम्मुख पाठ सुनावे ॥

जन्म जन्म के पाप नसावे । अन्त धाम शिवपुर में पावे ॥

कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी । जानि सकल दुःख हरहु हमारी ॥

॥ दोहा ॥

नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा । तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश ॥

मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान । अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण ॥