कामसूत्र- सहवास में आलिंगन के प्रकार जो आपके सेक्सुअल लाइफ को बहुत सुखमय कर देगे

Hugs hindi meaning-  आलिंगन , दुलार , आग़ोश ,  पकड़ , अंकालिंगन 

कामसूत्र में आलिंगन क्या है ?
आलिंगन स्त्री-पुरुष के बीच प्रेम व आत्मीयता के प्रदर्शन के लिए एक सशक्त माध्यम होता है. आलिंगन में एक दूसरे के शरीर को छुवन ज्यादा देर तक होता है. आलिंगन में  दोनों ही स्त्री-पुरुष के शरीर, विभिन्न अंग स्तन पेट, जांघ , त्वचा, ऊष्मा, नजर, साँस आदि को एक दूसरे की बहुत नजदीकी से महसूस करके आकर्षित और जोश में आते है. अगर आलिंगन सही तरीके से किये जाये तो कम परिचित स्त्री भी काम-क्रीड़ा को तैयार हो जाये. आलिंगन सम्भोग में बहुत महत्वपूर्ण जगह रखता है. आलिंगन ही स्त्री को महसूस करता है सामने वाला इंसान या पुरुष अपना है की नही. आलिंगन में वो महसूस करती है वो अपने को सुरछित और उत्तेजित महसूस करती है.
वैसे कामसूत्र में आलिंगन के आठ प्रकार है. इन आलिंगनों में चार आलिंगन उनके लिए जो अभी तक अविवाहित है या मुख्य सहवास या सम्भोग क्रिया से अनभिज्ञ है. वे आलिंगन के चार प्रकार है-
१- स्पृष्टक आलिंगन – स्त्री के गले लगने के समय सिर्फ एक दूसरे का शरीर स्पर्श होना.
२-  विद्धवक आलिंगन – स्त्री के गले लगने के समय सिर्फ  सीने से स्तन दबाना.
३- उदयधरस्टक आलिंगन – स्त्री के गले लगने के समय एक दूसरे के शरीर पर घर्षण करना
४- पीड़ितक आलिंगन –  स्त्री के गले लगने के समय किसी सहारे से बलपूर्वक शरीर दबाना.
 
(1) स्पृष्टक आलिंगन–  जब कोई कुमारी लड़की या स्त्री   रास्ते से आ रही हो और उसका प्रेमी किसी बहाने से उसी रास्ते से जाकर अपनी प्रेमिका के शरीर को छूता है और ये स्पर्श छणिक हो मतलब स्पर्श करते हुआ आगे बढ़ जाये. इस तरह के आलिंगन द्वरा वे दोनों एक दूसरे के मनोभाव को समझ लेते है. इसी प्रकार प्रेमिका भी अपने प्रेमी को अचानक से मिलकर उसे स्पर्श करके स्पृष्टक आंलिगन का मजा दे या ले सकते है.  इसमें एक दूसरे के शरीर का केवल स्पर्श होता है । इसका प्रयोग अकेले न मिल पाने के कारण उपयुक्त अवसर मिलने पर किया जाता है। यह सब कुछ इतने आकस्मिक ढ़ंग से सम्पन्न हो जाता है कि किसी को इसका कोई आभास तक नहीं होने पाता। इस थोड़ी सी छुअन (स्पर्श) से दोनों के मन और शरीर में एक अद्भुत सनसनी प्रवाहित होने लगती है।

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(2) विद्धवक आलिंगन–  इस आलिंगन की शुरुआत चतुर प्रेमिका खुद स्वयं करती है। अपने प्रेमी को किसी एकांत या निरापद स्थान में बैठे हुए अथवा खड़ा देखकर चुपचाप उसके पास पहुंच जाती है। प्रेमी अगर बैठा हुआ है तो नीचे रखी हुई किसी वस्तु को उठाने के बहाने वह इस प्रकार झुकती है कि उसके स्तन प्रेमी के शरीर को होले (धीरे) से स्पर्श करें। यदि प्रेमी खड़ा हुआ है तो प्रेमिका पीछे से जाकर उसे अपनी बांहों में कस लेती है। उसके पुष्ट स्तनों के स्पर्श से प्रेमी रोमांचित हो उठता है। इस आलिंगन का प्रयोग ऐसी प्रेमिकाओं के लिए उपयुक्त होता जिसके हृदय में प्रेम अंकुरित तो हो चुका है परन्तु पल्लवित नहीं हो पाया है। वैसे वे एक-दूसरे की ओर आकर्षित एवं सम्मोहित हो चुके होते हैं।

(3) उदयधरस्टक आलिंगन – जब प्रेमी तथा प्रेमिका किसी भीड़ भाड़ वाले स्थान पर या किसी उत्सव, यात्रा में अटवा किसी आंद्रे स्थान पर एक दूसरे के शरीर से चिपककर शीरी के अंगो का घर्षण करे तो इसे उदयधरस्टक आलिंगन कहते है.

(4) पीड़ितक आलिंगन – इस आलिंगन का प्रयोग आपस में गहरा प्रेम एवं अनुराग बढ़ जाने पर किया जाता है। वास्तव में यह आलिंगन उद्धृष्टक का ही विकसित रूप है। इसमें पुरुष स्त्री को दीवार अथवा किसी वस्तु के सहारे खड़ा कर आलिंगनबद्ध कर लेता है और पूरी शक्ति का प्रयोग कर अपने शरीर से उसके कामुक (उतेजक) अंगों को घर्षण करता है। इस आलिंगन का प्रयोग प्रेमिका के द्वारा भी किया जा सकता है। यह आलिंगन इस बात का स्पष्ट संकेत होता है कि स्त्री-पुरुष दोनों मानसिक रूप से सेक्स यानि संभोग के लिए आतुर एवं बेचैन हैं।

स्त्री-पुरुष का प्रेम जब परिपक्व हो चुका होता है तब दोनों लज्जा एवं संकोच से मुक्त होकर संभोग के आनंद से परिचित हो चुके होते हैं। उस समय संभोग से पहले अथवा बाद में प्रयोग होने वाले आलिंगनों को चार भेदों में बांटा गया है।

1- लतावेष्टिक आंलिगन  (लता के समान लिपट जाना)- इसमें अपने सामने खड़े हुए प्रेमी को प्रेमिका आलिंगनबद्ध करके लता के समान अर्थात बेल की तरह लिपट जाती है और कामोद्दीप्त होकर प्रेमी के मुख तथा होठों का बार-बार चुम्बन करती है। साथ ही अपने प्रेमी को मजबूती से बांहों में जकड़कर अपने स्तनों से प्रेमी के सीने को भरपूर दबाव देकर प्रेमी को भी उत्तेजित कर देती है।

2- वृक्षाधिरूढ़क आंलिगन  (वृक्ष पर चढ़ने के समान)- इसमें स्त्री अपना एक पैर पुरुष के पैर पर रखकर दूसरे पैर से उसकी जांघ तथा हाथों से कमर को जकड़ लेती है। दोनों की जांघे आपस में सट जाने के कारण शिश्न व योनि पर दबाव पड़ता है और दोनों की कामाग्नि भड़क उठती है। स्त्री आहें भरते हुए पुरुवृक्ष पर चढ़ने के समान क्रिया करती है।

3- तिलतण्डुलक आंलिगन  – संभोग से पहले कामोद्दीपन (कामोत्तेजना) के लिए यह आलिंगन बिस्तर पर लेटकर किया जाता है। इसमें स्त्री ज्यादातर पुरुष के दाईं और लेटती है। दोनों करवट लेकर एक-दूसरे से चिपक जाते हैं। मुख से मुख, होठों से होठ, छाती से छाती, जांघों से जांघे, पैर से पैर तथा योनि से लिंग एकदम चिपक जाते हैं। इससे ऐसी कामोत्तेजना उत्पन्न होती है जिसमें संभोग किए बिना संतुष्टि प्राप्त नहीं होती है।

4- क्षीरमलक आंलिगन – इस आलिंगन में स्त्री और पुरुष दोनों एक दूसरे में समा जाने को बेचैन हो जाते हैं। इस आलिंगन का प्रयोग अक्सर दो प्रकार से होता है।

पहली क्रिया में स्त्री व पुरुष दोनों नग्न अवस्था में होते हैं। स्त्री पुरुष की गोद में बैठ कर उसे बाहों में जकड़ लेती है। स्त्री के पुष्ट स्तनों के दबाव से पुरुष सिहर उठता है।
दूसरी क्रिया में पुरुष नीचे लेट जाता है और स्त्री उसके ऊपर इस प्रकार लेटती है कि दोनों के शरीर आपस में सट जाते हैं इससे यौनांगो में दबाव पड़ता है और कामोत्तेजना तीव्र रूप से उत्पन्न होती है जो संभोग करने के बाद ही समाप्त होती है।

इन आलिंगनों के अलावा कुछ और लोगों ने अन्य विधियों का उल्लेख किया है-

1- उरूपग्हन आंलिगन  – उरूपग्हन आलिंगन में  स्त्री और पुरुष करवट के बल लेटकर सहवास करते हैं.  इसमें पुरुष अपनी जांघों के बीच स्त्री की जांघों को बारी-बारी से बलपूर्वक दबाकर रोमांचित करता है। यही क्रिया स्त्री भी दोहराती है। ये जरुरी नही पुरुष ही उरूपग्हन आलिंगन करे अगर स्त्री की जांघे मोटी हो वो उरूपग्हन आलिंगन करे तो सहवास क्रिया के आनंद में वृद्धि होती है.

2- जघनोपगहन आंलिगन – यह प्रयोग पहले स्त्री द्वारा ही शुरु किया जाता है। इस आलिंगन में पुरुष नीचे लेट जाता है और स्त्री ऊपर से लेटकर अपनी जांघों तथा कमर से प्रेमी की जांघों तथा कमर को इस प्रकार से मिलाती है कि योनि से लिंग पर दबाव पड़ता है या स्त्री पुरुष की जांघो को दबाकर अपनी योनि की ऊपरी सतह को पुरुष के शिश्न की ऊपरी साथ मतलब नाभि कके पास एक स्थान से घर्षण करती है. साथ ही पुरुष का प्रेमपूर्वक चुंबन करते हुए थोड़ी नोच-खरोच व दन्त छेदन करते हुए कामोत्तेजित करती है.

3- स्तनलिंगन आंलिगन – यह आलिंगन भी स्त्री द्वारा ही किया जाता है। इसमें स्त्री खड़ी होकर, बैठकर, करवट से लेटकर या पुरुष के ऊपर लेटकर अपने पुष्ट स्तनों से उसकी छाती पर बार-बार दबाव देती है. एसे आंलिगन में  स्त्री के स्तनों की कोमता व मांसलता के स्पर्श से पुरुष को विशेष अलौकिक आनंन्द की प्राप्ति होती है.

4- ललाटिका आंलिगन – इसमें भी स्त्री ही पहले शुरुआत करती है। पुरुष चित्त लेट जाता है। अब स्त्री उसके ऊपर इस प्रकार लेटती है कि माथा, आंखे तथा होंठ आपस में जुड़ जाते हैं। यह आलिंगन बहुत ही भावनात्मक एवं रागात्मक होता है। इसके प्रयोग से रोमांचयुक्त आनंद प्राप्त होता है।
कुछ कामशास्त्रियों ने सहलाना, रगड़ना, भीचना आदि को भी आंलिगन की श्रेणी में रखा है. क्योकि इनसे भी स्पर्श सुख मिलता है. लेकिन इस बात पर आचार्य वात्स्यान सहमत नहीं है. उनका मानना है की सहलाना रगड़ना या भीचना आदि का इस्तेमाल सहवास क्रिया के अलावा अन्य अवसरों पर भी किया जाता है. लेकिन आलिगन से सहवास क्रिया के दौरान पुरुष में कामलॉश जाग्रत होती है. आंलिगन सहवास क्रिया के दौरान काम लालसा बढ़ने के लिए होता है. जब स्त्री-पुरुष में कामभाव और काम-लालसा चरम शिखर पर पहच जाये तो काम ग्रन्थ में बातये गए उपयोग की जरुरत ही नहीं है.आंलिगन तो स्त्री-पुरुष में सहवास क्रिया के दौरान आपसी प्रेम, सुकून, और प्रसन्नता व अभिव्यक्ति का तरीका मात्रा है

आधुनिक समय में प्रचलित आंलिगन

सामने से किये जाना वाला आंलिगन
यह आंलिगन वह होता है जिसमे स्त्री के मुख की तरफ से पुरुष आलिगन करता है और दोनों की चटिया परस्पर मिलती है. विविधता के लिए इस आंलिगन में छाती के साथ पुरे शरीर को  तथा होंठो को भी मिलाया जा सकता है. इस तरह के आंलिगनो में हाथो से कमर या नितम्बो को अपनी ओर खींचते हुए अपने शरीर का पूरा दबाव दूसरे के शरीर पर डाला जा सकता है. इसमें एक दूसरे से लिपटना, एक दूसरे को भीचकर स्वयं में समै लेने की कोशिश करना तथ्य अपने विशेष अंगो को स्त्री के के विशष्ट अंगो से घर्षण आदि की क्रिया शामिल है. इस आंलिगन में स्त्री-पुरुष अपनी मर्जी से  व रूचि से आवश्यकता अनुसार चुंबन, मर्दन के अलावा दन्तछत, नखछत व सीत्कार आदि क्रिया भी कर सकते है.

सामने से लेटकर किया जाने वाला आंलिगन – लेटकर आंलिगन करने की भी दो प्रकार होते है. पहला तो यह जब एक साथी बिस्तर पर चित लेटा हो और दूसरा उसके ऊपर लेटा हो. इस प्रकार का आंलिगन उस समय अधिक उपयोगी होता है. जब एक पछ अपने पुरे शरीर को या अपने विशेष अंगो को दूसरे पछ के शरीर पर या विशेष अंगो को रगड़ना छठा हो. यह आंलिगन दोनों पछो को अत्यंत उत्तेजित करने वाला तथा भरपूर आनंद प्रदान करने वाला होता है. हमारी दृष्टि में इस प्रकार का आंलिगन सबसे सर्वोत्तम कहलाता है. लेटकर दूसरी तरह के आंलिगन में स्त्री-पुरुष दोनों बिस्टेर पर एक- दूसरे की तरफ मुह करके करवट के बल लेटते है. और एक दूसरे के शरीर को पकडे रहते है. इस आंलिगन में पुरुष द्वरा एक पेअर को स्त्री के नितम्बो, कमर या जांघो पर लपेटने की अथवा दोनों पैरो से स्त्री की जांघो व घुटनो को संडासीकी तरह जकड़ने की सुविधा रहती है किन्तु  रगड़ने की सुविधा नही रहती है. अत: यह आंलिगन छाती व हाथो के साथ- साथ जांघो को भी परम सुख प्रदान करता है.  

 सामने की ओर बैठकर किये जाने वाला  आंलिगन – सामने से बैठकर भी आंलिगन दो प्रकार से हो सकता है. पहला तो यह की स्त्री-पुरुष बिस्तर पर एक दूसरे के काफी नजदीक बिठाकर और अपना मुह एक दूसरे के सामने करके आंलिगन करते है. इस आंलिगन में छाती से छाती रगने व दबने की सुविधा रहती है लेकिन निचले भाग का विशेष प्रयोग नही हो पता है. बैठकर दूसरी तरह के आंलिगन में स्त्री पुरुष की गोद में इस तरह बैठती है जिसमे दोनों के के मुख आमने-सामने रहते है. यह आंलिगन बैठकर किये जाने वाले आंलिगनो से अधिक बेहतर होता है क्योकि इसमें छाती व हाथो को तो आनंद मिलता है साथ ही स्त्री के स्तनों को सुख भी पुरुष की जांघो व शिश्न को मिलता है. इस आंलिगन में एक दूसरे के ऊपरी शरीर को भी भिचने व दबाने के साथ स्त्री के नितम्बो व योनि प्रदेश को पुरुष की जांघ व शिश्न द्वरा रगड़ने की विशेष सुविधा रहती है.

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