INDIGESTION ,ACIDITY , GASTRICISM KA GHARELU UPCHAR

                                    

पेट, शूल, अपच– पाचन क्रिया में गड़बड़ी के कारण पेट फूलना, अपच, कब्ज, पतले दस्त, खट्टी-मीठी डकारें आना, मतली या उल्टी, मुंह में पानी आना, लीवर में भारीपन, गैस बनना, गले में जलन आदि लक्षण दिखाई देते हैं। सिरदर्द आदि उत्पन्न होते हैं। रोग की उपेक्षा अन्य  जटिलताओं को जन्म दे सकती है । इसलिए  सबसे पहले खान-पान और व्यायाम अनुशासन पर ध्यान देना चाहिए। बीमारी की स्थिति में अगर आप इन घरेलू नुस्खों का इस्तेमाल करेंगे तो स्थाई लाभ पा सकते हैं।

अपच, एसिडिटी, और गैस्ट्रिकिज्म आम पाचन संबंधी  कारण :

  1. असंतुलित आहार: अधिक मसालेदार, तैलीय, और भारी भोजन का सेवन अपच, एसिडिटी, और गैस्ट्रिकिज्म का कारण बन सकता है।

  2. तनाव: तनाव और चिंता पाचन तंत्र पर प्रभाव डालते हैं, जिससे एसिडिटी और गैस की समस्या हो सकती है।

  3. अनियमित भोजन का समय: अनियमित खाने की आदतें पाचन क्रिया को प्रभावित करती हैं, जिससे अपच और एसिडिटी हो सकती है।

  4. धूम्रपान और शराब: धूम्रपान और अत्यधिक शराब का सेवन पाचन तंत्र को प्रभावित करता है, जिससे एसिडिटी और गैस की समस्या हो सकती है।

  5. शारीरिक निष्क्रियता: नियमित व्यायाम न करने से पाचन क्रिया मंद पड़ सकती है, जिससे अपच और गैस्ट्रिकिज्म हो सकता है।

  6. कुछ दवाइयां: कुछ प्रकार की दवाइयां, जैसे कि एंटी-इन्फ्लेमेटरी ड्रग्स, एसिडिटी और गैस का कारण बन सकती हैं।

  7. अन्य स्वास्थ्य समस्याएं: कुछ स्वास्थ्य स्थितियां, जैसे कि गैस्ट्रोएसोफेजियल रिफ्लक्स रोग (GERD), अल्सर, और गैस्ट्राइटिस भी इन समस्याओं का कारण बन सकती हैं।

अपच, एसिडिटी, और गैस्ट्रिकिज्म के लक्षण :

  1. पेट में जलन (Heartburn): एसिडिटी का सबसे आम लक्षण है पेट में जलन, जो आमतौर पर भोजन के बाद होती है।

  2. पेट में दर्द या असुविधा: अपच के कारण पेट में दर्द या भारीपन महसूस हो सकता है।

  3. बेचैनी और गैस: पेट में गैस बनने से बेचैनी, फूलना, और डकार आ सकती है।

  4. मतली या उल्टी: कुछ मामलों में, अपच से मतली या उल्टी की समस्या हो सकती है।

  5. भूख न लगना: अपच के कारण कभी-कभी भूख कम लग सकती है।

  6. सीने में जलन: एसिडिटी के कारण सीने में जलन और असुविधा महसूस हो सकती है।

  7. खट्टी डकारें: खट्टी डकारें आना भी एसिडिटी का एक लक्षण हो सकता है।

  8. गले में खराश या जलन: एसिड रिफ्लक्स के कारण गले में खराश या जलन हो सकती है।

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                                                     अपच, एसिडिटी, और गैस्ट्रिकिज्म

अपच, एसिडिटी, और गैस्ट्रिकिज्म के प्रमुख शारीरिक और मानसिक प्रभाव :

अपच, एसिडिटी, और गैस्ट्रिकिज्म न केवल शारीरिक असुविधा पैदा करते हैं, बल्कि ये मानसिक स्वास्थ्य पर भी प्रभाव डाल सकते हैं। इनके कुछ प्रमुख शारीरिक और मानसिक प्रभाव निम्नलिखित हैं:

शारीरिक प्रभाव (Physical Effects)

  1. कमजोरी और थकान: लगातार अपच और एसिडिटी से शरीर में कमजोरी और थकान महसूस हो सकती है।

  2. नींद में बाधा: एसिडिटी और पेट की समस्याएं अच्छी नींद में बाधा डाल सकती हैं।

  3. भूख में कमी: अपच और एसिडिटी से भूख कम हो सकती है, जिससे पोषण की कमी हो सकती है।

  4. वजन में परिवर्तन: लगातार पाचन समस्याएं वजन में अनियमितता का कारण बन सकती हैं।

  5. शारीरिक असुविधा: पेट में दर्द, जलन, और अन्य असुविधाएं दैनिक गतिविधियों में बाधा डाल सकती हैं।

मानसिक प्रभाव (Mental Effects)

  1. तनाव और चिंता: पाचन समस्याएं तनाव और चिंता को बढ़ा सकती हैं, खासकर यदि वे लगातार हों।

  2. मूड में परिवर्तन: अपच और एसिडिटी से मूड स्विंग्स और चिड़चिड़ापन हो सकता है।

  3. एकाग्रता में कमी: शारीरिक असुविधा से मानसिक एकाग्रता में कमी आ सकती है।

  4. सामाजिक व्यवहार में प्रभाव: लगातार पाचन समस्याएं सामाजिक गतिविधियों में भाग लेने की क्षमता को प्रभावित कर सकती हैं।

🔍 और जानें ➜

1.रोजाना  नाश्ते के साथ पके पपीते के फल का  सेवन करने सेकुछ ही दिनों में लाभ दिखने लगता है आवश्यकतानुसार सेंधा या काला नमक और भुना हुआ जीरा पीसकर मिलाना चाहिए. आप चाहें तो इसे दोपहर के समय भी ले सकते हैं. अपने भोजन में मौसम के अनुसार गेहूं की रोटी, मूंग या मसूर की दाल, लौकी, पालक या मूली आदि सब्जियों का  प्रयोग करेंदस्त होने पर दाल-चावल की खिचड़ी का सेवन फायदेमंद होता है।

2. कच्चे पपीते का साग भी बदहजमी में फायदेमंद होता है। अगर आप कब्ज से पीड़ित हैं तो खाली पेट पपीता फल खाना चाहिए।

 

3. पुराने अजीर्ण में पपीते के बीजों का चूर्ण बनाकर  प्रत: – सायं १ से ३ ग्राम की मात्रा में जल के साथ लेना चाहिये। अफरा या आध्मान में भी इसका तत्काल लाभ देखा गया है। ठीक  प्रकार से पेड़ पर पका हुआ पपीता लेना चाहिये। वस्तुत: पपीते का प्रभाव समूचे पाचन – तन्त्र पर पड़ता है, जिससे कि उससे सम्बन्धित सभी उपसर्ग स्थायी रूप से शा न्त हो जाते हैं।

4. सभी उदर रोगों में पपीते का रस भी लाभदायक रहता है। इसके लिए पके मीठे फलों का रस निकालना चाहिये। फलों को काट कर अधिक देर तक रखने से उसमें वायु – ससर्ग के कारण प्रदूषण और कड़वाहट आने लगती है, इसलिए बाजार से कटे हुए फल नहीं खरीदने चाहिये।
5.  काली मिर्च ५ ग्राम, श्वेत जीरा १० ग्राम, सेंधा नमक १५ ग्राम और नौसादर २० ग्राम। सबको कूट कपड़छन करके रखेंं।


मात्रा :- १ से ३ ग्राम तक रोगी का बलाबल तथा रोग की स्थिति के अनुसार ताजा पानी अथवा सुखोष्ण पानी के साथ सेवन करायें। इससे अजीर्ण, अग्निमान्द्य आदि व्याधियों में आनुकूल लाभ होते देखा गया है। यह चूर्ण स्वादिष्ट तथा रुचिवर्धक भी है।


6. नौसादर १२ ग्राम, काला नमक, सेंधा नमक और विड नमक १ – १ ग्राम, भुनी हींग तथा टाटरी आधा – आधा ग्राम। इस सबको खरल करके पानी से भरी बोतल में डालकर दिनभर धूप में रखें। इसकी मात्रा २५ – ३० मिलीलीटर तक सेवन करनी चाहिये।    यह दवा रुचिवर्धक तथा मन्दाग्नि – नाशक है। उदरमूल, अजीर्ण आदि में अपेक्षित लाभ दिखाती है।


7. सोंठ, काली मिच, छोटी पीपल, बड़ी इलायची के बीज, लोंग, सोनागेरु और टाटरी २० – २० ग्राम, काला नमक ६० ग्राम, नौसादार ७५ ग्राम लेकर सब  को पृथक – पृथक महीन करके एक साथ मिलावें और खरल द्वारा एकजीव करके शी
शी में रखें।  

मात्रा :- १ से ३ ग्राम तक यह चूर्ण भोजन करने के आधा घण्टे प’चात् ताजा पानी के साथ दोनों बार खाना चाहिये। तीव्र अजीर्ण हो तो गर्म पानी के साथ लेना उपयुä होगा। इसके सेवन से सब 
प्रकार का अपच, खट्टी डकार, उदर शूल, मन्दाग्नि आदि में तुरन्त लाभ पहुँचता है। स्वादिष्ट भी है, इसलिए मुख का जायका ठीक करने के लिए चुटकी भर चूर्ण चाहे जब बिना किसी अनुपान के सेवन कर सकते हैं। यदि मूत्र में रुकावट हो तो इसके सेवन से वह भी ठीक हो जाती है। मूत्र खुलकर होने लगता है।

8. सेंधा नमक को खरल में अत्यन्त महीन करके रखें। इसकी मात्रा २ ग्राम से ४ ग्राम तक दे सकते हैं। सामान्यत: गर्म जल के साथ दें अथवा अर्क मकोय या अर्क सोंफ के साथ देना चाहिये। इससे अजीर्ण, पेट दर्द, अफरा तथा मूत्रकृच्छ में भी लाभ होता है। रोग के लक्षण और रोगी का बलाबल देखकर मात्रा और अनुपान का निशचय करना चाहिये। यदि बालकों देनी हो तो १०० मिलीग्राम से ४०० मिलीग्राम तक दी जा सकती है। बालकों के दन्तोद्गम के विकार, दूध पटकना, वमन आदि में लाभ हो जाता है।

9. छोटी पतली साफ मूली को पानी से ठीक 
प्रकार धो लें और उसकी फाँक पर सेंधा नमक लगाकर भोजन के पशचात् सेवन करें तो अपच में शीघ्र लाभ होता है। यदि स्वस्थ अवस्था में मूली का सेवन किया जाये तो अपच रोग होने की सम्भावना बहुत कम रहती है। 

10.  मूली को बीच से चीर कर फाँक बना लें। उस पर सेंधा नमक, काला नमक और नौसादर का सम मात्रा का पिसा हुआ चूर्ण छिड़कने से धागे से बाँध कर किसी स्थान पर लटका दें। नीचे कोई एक बर्तन रखें, जिसमें रस टपक कर सुरक्षित रह सके। इस रस को नींबू के रस में मिला कर पीने से अपच, अफरा, गैस, अरुचि आदि उपसर्ग दूर हो जाते हैं और भूख लगने लगती है।

11. अदरक का रस एक चम्मच में नमक, जीरा तथा किंचित नींबू का रस मिलाकर पीने से ही  विकारों में पर्याप्त लाभ प्रतीत होता है। शीघ्रता मेें अन्य वस्तुएँ न मिलें तो केवल अदरक का रस सेवन कर लेना ही पर्याप्त है।

12. अदरक का रस ३-४ चम्मच में अनार का रस भी उतना ही मिला कर पीने से अरुचि, खट्टी डकारें, जी मिचलाना, गले में जलन, अपच आदि लक्षणों में पर्याप्त लाभ होता है, क्योंकि अदरक, अनार का यह मिश्रण तत्काल लाभ दिखाता है।

13. अदरक को पीसकर अपेक्षित नमक, जीरा डालकर उसका पतला शाक अथवा सूप बनाकर पीने से अजीर्ण और उससे सभी उपद्रव दूर हो जाते हैं। यदि इस सूप में नींबू का रस भी डाल लिया जाये तो स्वाद भी बढ़ता है और लाभ भी अधिक होता है।

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