- जीवाणुजनित अतिसार: जीवाणुओं द्वारा होने वाला अतिसार। इसमें विभिन्न प्रकार के जीवाणु जैसे कि ई.कॉली, सैल्मोनेला और शिगेला होते हैं।
- विषजनित अतिसार: जब जीवाणु विष उत्सर्जित करते हैं और वह हमारे पाचन प्रणाली में जाता है, तो विषजनित अतिसार होता है।
- ओस्मोटिक अतिसार: जब आंत में अधिक मात्रा में चीनी या सॉल्ट होता है जिससे पानी की सहेजना न हो पाए।
- संक्रामक अतिसार: जब वायरस, जीवाणु या प्रोटोजोआ द्वारा संक्रमण होता है।
- आवेजनिक अतिसार: जो आवेजन से संबंधित है, जैसे की कुछ दवाओं या खाद्य पदार्थों के प्रति अतिप्रतिक्रिया।
जीवाणुजनित अतिसार से बचाव: सावधानियां और सुझाव
जीवाणुजनित अतिसार यानी जीवाणुजनित डायरिया ज्यादातर अस्वच्छता, असाफ पानी और संक्रमित खानपान से होता है। इससे बचाव के लिए निम्नलिखित सावधानियां और सुझाव पालन किये जा सकते हैं:
- स्वच्छता बनाए रखें: हाथ अक्सर धोएं, विशेष रूप से खाना बनाने, खाने, और टॉयलेट जाने के बाद।
- सुरक्षित पानी: केवल सुधारित या उबला हुआ पानी पिएं। पानी को उबालकर ठंडा करने के बाद ही पिएं।
- खानपान में सतर्कता: अच्छी तरह से पकाए गए खाद्य पदार्थों का सेवन करें और कच्चा खाना खाने से पहले अच्छी तरह धो लें।
- अस्वच्छ खानपान से बचें: खुले आसपास बिकने वाले खाद्य पदार्थों से परहेज करें, जैसे कि सड़क किनारे की ठेलियों से।
- फल और सब्जियां: जिन फलों और सब्जियों को छिलका उतारकर खाया जा सकता है, उन्हें ही पसंद करें।
- मांस और मछली: अच्छी तरह से पका हुआ मांस और मछली ही खाएं।
- दूध और दूध से बने उत्पाद: पास्तेराइज़ किया हुआ दूध और दूध से बने उत्पादों का सेवन करें।
- व्यक्तिगत ह्यजीन: स्वच्छ और सूखे वस्त्र पहनें और नियमित रूप से स्नान करें।
- बच्चों की विशेष देखभाल: बच्चों को साफ-सुथरे पानी और खाने में दें और उनके हाथों को धोने की आदत डालें।
- तत्परता: यदि आपको लगता है कि आप जीवाणुजनित अतिसार से प्रभावित हो रहे हैं, तो तुरंत चिकित्सक की सलाह लें।
- डायरिया में परहेज: सावधानियां और आहारिक सुझाव
- डायरिया के समय शरीर से अधिक मात्रा में पानी और खनिज निकल जाते हैं, जिससे शरीर में पानी की कमी हो सकती है। इसलिए, डायरिया के समय उचित आहार और जीवनशैली का पालन करना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
- पानी और तरल पदार्थ: अधिक मात्रा में पानी, नींबू पानी, नमक-चीनी का घोल और ORS (Oral Rehydration Solution) पिएं।
- साबुदाना और पोहा: इन्हें अच्छे से पकाकर खाना चाहिए, क्योंकि ये पेट को हल्का और शांत रखते हैं।
- फल: केला, सेब (छिलका उतारकर) और पपीता डायरिया में फायदेमंद होते हैं।
- स्वच्छ और ताजा खानपान: खाना हमेशा अच्छी तरह से पकाकर और गर्मा गरम ही खाएं।
- तला हुआ खाना और मसालेदार खाना से बचें: ये पेट को और अधिक बिगाड़ सकते हैं।
- दूध और डेयरी उत्पाद: डायरिया के समय दूध और अन्य डेयरी उत्पादों का सेवन कम कर दें, क्योंकि इस समय शरीर लैक्टोज को सही तरह से पचा नहीं पाता।
- कैफीन और शराब: ये डायरिया को बढ़ावा दे सकते हैं, इसलिए इनसे परहेज करें।
- अधिक फाइबर युक्त खानपान: जैसे की रौगणी युक्त खाना, अधिक तेज़ मसाले और तला हुआ खाना, से बचें।
यहाँ डायरिया के लिए होम्योपैथिक और आलोपैथिक दवा के विकल्पों को संचालित किया गया है। हालांकि, इसे मेडिकल सलाह के रूप में नहीं देखना चाहिए। किसी भी रोग के लिए उपचार प्रारंभ करने से पहले स्वीकृत चिकित्सक से सम्पर्क करना आवश्यक है।
डायरिया (Diarrhoea) की होम्योपैथिक दवा:
- Arsenic Album: अगर डायरिया बर्फ के पानी से हुआ हो या जीवाणुजनित हो, और साथ में ज्यादा प्यास भी हो, तो इस दवा का उपयोग होता है।
- Podophyllum: इसे तब दिया जाता है जब मल तरल होता है और पेट में गड़बड़ी या आवाज होती है।
- Nux Vomica: इसका इस्तेमाल तब होता है जब डायरिया अधिक खानपान या शराब के सेवन से हुआ हो।
- Chamomilla: इसका प्रयोग तब होता है जब डायरिया ज्यादा गुस्सा या चिढ़चिढ़ापन के कारण हुआ हो।
जीवाणुजनित अतिसार (Diarrhoea) की आलोपैथिक दवा:
- Oral Rehydration Solution (ORS): इसका प्रयोग शरीर में पानी और नमक की कमी को पूरा करने के लिए किया जाता है।
- Antibiotics: जैसे कि आजीथ्रोमायसिन, सिप्रोफ्लॉक्सेसिन आदि जीवाणुजनित अतिसार के लिए प्रस्कृत की जाती हैं। हालांकि, सभी डायरिया के मामलों में एंटीबायोटिक्स की जरूरत नहीं होती।
- Loperamide: इसका उपयोग अतिसार की गंभीरता को कम करने के लिए किया जाता है, लेकिन यह जीवाणुजनित अतिसार का इलाज नहीं करता।
फिर भी, यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि आप अपने डॉक्टर से सलाह लें और उनकी दिए गए निर्देशों का पालन करें।
जीवाणुजनित अतिसार में जल और नमक का महत्व
डायरिया या अतिसार, विशेष रूप से जब यह जीवाणुजनित हो, शरीर से अधिक मात्रा में पानी और नमक की हानि को उत्तेजित करता है। इसके नतीजे स्वरूप, एक व्यक्ति को निर्जलीकरण का खतरा हो सकता है, जो जीवन के लिए घातक हो सकता है।
जल का महत्व:
- संतुलन की बहाली: डायरिया के दौरान शरीर से अधिक पानी खो जाता है, जिससे शरीर में पानी की कमी हो जाती है। इस पानी की कमी को पूरा करने के लिए पीने का पानी बहुत महत्वपूर्ण है।
- विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालना: पानी पीने से शरीर को मदद मिलती है विषाक्त पदार्थों और जीवाणुओं को बाहर निकालने में, जो डायरिया का कारण बनते हैं।
नमक का महत्व:
- इलेक्ट्रोलाइट संतुलन: जब डायरिया होता है, शरीर से नमक भी खो जाता है। यह नमक, जैसे सोडियम और पोटैसियम, शरीर के इलेक्ट्रोलाइट संतुलन में महत्वपूर्ण हैं, जो मांसपेशियों और तंतुओं के सही फंक्शन के लिए जरूरी हैं।
- ORS के माध्यम से पुनर्निर्माण: ‘ओरल रीहायद्रेशन सॉल्यूशन’ (ORS) जल और नमक का संयोजन होता है, जिससे निर्जलीकरण से होने वाली हानि को रोका जा सकता है।
इस प्रकार, जल और नमक जीवाणुजनित अतिसार में शरीर के संतुलन और पुनर्निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसलिए, जब किसी को डायरिया होता है, उसे पर्याप्त मात्रा में पानी पीना चाहिए और ORS का सेवन करना चाहिए।
डायरिया से जुड़ी मिथकें
डायरिया एक आम समस्या है, जिससे अधिकांश लोग किसी न किसी समय में पीड़ित होते हैं। इसके बावजूद, इस विषय में कई मिथकें हैं जिन्हें अक्सर सच मान लिया जाता है। यहाँ कुछ ऐसी ही मिथकें हैं:
- मिथक: डायरिया होने पर आपको पानी की अधिक मात्रा में सेवन से बचना चाहिए।
- सत्य: डायरिया के दौरान शरीर अधिक पानी खो देता है। इसलिए पानी और अन्य तरल पदार्थों का सेवन बढ़ाना चाहिए, ताकि निर्जलीकरण से बचा जा सके।
- मिथक: डायरिया केवल गंदे पानी या खाने से होता है।
- सत्य: हालांकि अशुद्ध पानी और खाने से डायरिया होने का जोखिम बढ़ जाता है, यह अन्य कारणों से भी हो सकता है, जैसे वायरल संक्रमण।
- मिथक: डायरिया होने पर आपको खाना बंद कर देना चाहिए।
- सत्य: खाने को पूरी तरह से बंद करना सही नहीं है। हालांकि, फ्राइड और मसालेदार खाना से बचना चाहिए, लेकिन पोषण से भरपूर भोजन का सेवन जारी रखना चाहिए।
- मिथक: डायरिया केवल बच्चों को होता है।
- सत्य: डायरिया किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकता है, हालांकि बच्चों में इसका जोखिम अधिक होता है।
- मिथक: डायरिया स्वयं ही ठीक हो जाता है, इसके लिए डॉक्टर की सलाह की जरूरत नहीं है।
- सत्य: अधिकांश मामलों में डायरिया अपने आप ही ठीक हो जाता है, लेकिन अगर यह लंबे समय तक बना रहता है या अधिक गंभीर होता है, तो डॉक्टर की सलाह जरूर लेनी चाहिए।
इन मिथकों को ध्यान में रखते हुए, हमें सही जानकारी और समझ के साथ ही किसी भी स्थिति का सामना करना चाहिए।
जीवाणुजनित अतिसार (डायरिया) के 20 घरेलू उपाय
जीवाणुजनित अतिसार या डायरिया एक सामान्य समस्या है जिससे अकेले भारत में हर साल लाखों लोग प्रभावित होते हैं। यदि आप भी इससे पीड़ित हैं, तो यहाँ कुछ घरेलू उपाय हैं जो आपको आराम पहुँचा सकते हैं:
- अदरक की चाय: अदरक में शामिल तत्व अतिसार के लक्षणों को शांत करने में मदद करते हैं।
- बनाना: इसमें पेक्टिन होता है जो डायरिया के लक्षणों को कम करता है।
- जीरा पानी: जीरा पाचन में सहायक है और अतिसार में राहत दिलाता है।
- दही: इसमें मौजूद प्रोबायोटिक्स अंत में सहायक होते हैं।
- अरारोट का पानी: यह पेट को शांत रखने में मदद करता है।
- चावल का पानी: यह पेट की सूजन को शांत करता है।
- पुदीना पानी: पुदीना अतिसार में आराम पहुंचाने में मदद करता है।
- फेनल दाना: यह पाचन क्रिया में सहायक होता है।
- अप्पल साइडर विनेगर: इसे पानी के साथ मिलाकर पीने से आराम मिलता है।
- अनार का जूस: यह डायरिया के लक्षणों को कम करने में मदद करता है।
- लौंग का पानी: लौंग में शामिल तत्व अतिसार को शांत करते हैं।
- बील पत्र: इसे पानी में उबालकर पीने से राहत मिलती है।
- तुलसी पत्तियाँ: तुलसी अंत में संक्रमण से लड़ने में मदद करती है।
- फेनुग्रीक सीड्स: यह पाचन में सहायक है और डायरिया के लक्षणों को शांत करता है।
- हल्दी पानी: हल्दी में एंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं जो अतिसार में मददगार होते हैं।
- खजूर: खजूर में पोटैशियम होता है जो डायरिया में निर्जलीकरण से बचाव करता है।
- जामुन: जामुन में तन्निन होता है जो अतिसार के लक्षणों को कम करता है।
- अजवायन पानी: अजवायन पेट की सूजन को शांत करने में मदद करता है।
- लीमू पानी: यह निर्जलीकरण से बचाव करता है और पेट को शांत रखता है।
- हनी: हनी पेट में शांति पहुँचाने और डायरिया के लक्षणों को शांत करने में मदद करता है।
ये उपाय आमतौर पर सुरक्षित हैं, लेकिन यदि आपके लक्षण गंभीर होते जाएं या बढ़ते जाएं, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।