Eid al-Adha (ईद उल-अज़हा)

Eid al-Adha (ईद उल-अज़हा),  عید الاضحیٰ(ईद उल जुहा)- इतिहास, महत्व और अंतर -29Jun

ईद उल अजहा क्यों मनाया जाता है?

ईद उल अजहा या बकरीद इस्लामी कैलेंडर के मुताबिक ईद के पंद्रह दिन बाद मनाया जाने वाला एक प्रमुख त्योहार है। यह त्योहार इस्लामी समुदाय में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है और लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण और खुशी का मौका है। इसे वक़्तानुसार हज के बाद आने वाले धूमधाम वाले त्योहारों में से एक माना जाता है।

ईद उल अजहा का मतलब होता है “कुर्बानी की ईद”। इसे अल्लाह के बंदों द्वारा उसके सामर्थ्य का उपहार और वफादारी के संकेत के रूप में मनाया जाता है। इस दिन लोग एक बकरा या अन्य जानवर की खुरबानी करते हैं, जिसके बाद उन्हें खाने के लिए हिस्सा मिलता है और बाकी अंश को गरीबों और जरूरतमंद लोगों को दान किया जाता है।

यह त्योहार इब्राहीम (अब्राहम) के समर्पण के ऊपर आधारित है, जो कुरान में उल्लेखित है। इब्राहीम को अल्लाह ने एक स्वप्न के माध्यम से यह परीक्षा दी थी कि क्या वह अपने प्यारे बेटे इस्माईल को खुरबानी के लिए उठाएगा। इब्राहीम ने अपनी संदेहवादीता को परास्त करते हुए अल्लाह की आज्ञा का पालन किया और बकरीद के रूप में खुरबानी दी।

ईद उल अजहा धार्मिक, सामाजिक और मानसिक रूप से एक महत्वपूर्ण त्योहार है। यह दिखाता है कि लोग अल्लाह के आदेशों का पालन करते हैं और साझा करुणा और सद्भावना के मूल्यों को महत्व देते हैं। इसके अलावा, यह एक मौका प्रदान करता है जब लोग आपस में मिलकर खुशी मनाते हैं, परिवार और दोस्तों के साथ वक्त बिताते हैं और गरीबों और असहाय लोगों की मदद करते हैं।

इसलामी ईद उल अजहा एक अनुभव में आने वाले अद्वितीय और यादगार समय का एहसास कराती है। यह लोगों को मिलकर एक-दूसरे के साथ अच्छाई और भाईचारे की अनुभूति कराती है और उन्हें समझाती है कि समृद्धि और उदारता को साझा करना मानवता का सच्चा मतलब है।

ईद उल अजहा इतिहास और इसका महत्व क्या है ?

ईद उल अजहा, जिसे बकरीद (Bakrid) भी कहा जाता है, इस्लामी धर्म में महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। इसे हज़ के दौरान मनाया जाता है और इसका मतलब होता है ‘बकरे की कुर्बानी का त्योहार’। यह ईद द्वारा हज़ यात्रा के समापन को संकेतित करता है और हज़ पर्वतीय स्थान मीना में कुर्बानी के रूप में जानवरों की बलि देने की परंपरा को याद करता है।

ईद उल अजहा का महत्व उस समय की याद कराता है जब पैगंबर इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने अल्लाह की मांग पर अपने पुत्र इस्माईल की कुर्बानी देने की तैयारी की थी। इब्राहीम अलैहिस्सलाम को इस्माईल की जगह एक बकरा मिला, जिसे वह खुदा के लिए बलि देने के लिए चुना। खुदा ने इस पर इब्राहीम अलैहिस्सलाम की परीक्षा ली और बकरे की जगह एक भेड़ भेजी गई, जिसे उन्होंने बलि देने के लिए चुना। इससे इब्राहीम अलैहिस्सलाम की निष्ठा, आज़माइश और खुदा के प्रति समर्पण की प्रशंसा की जाती है।

ईद उल अजहा के दिन, मुस्लिम समुदाय के लोग एक जानवर (बकरा, भेड़, बैल, या ऊंट) की कुर्बानी करते हैं। वे इस्लामी शरीयत के अनुसार किसी खास ईबादतगाह या मस्जिद में जाते हैं और अपनी कुर्बानी को अल्लाह के लिए अर्पित करते हैं। उन्हें इस कार्य के माध्यम से त्याग, सेवा, और दान की महत्त्वपूर्ण भावना को व्यक्त करने का अवसर मिलता है। यह त्योहार मानवीय संबंधों, दया, समर्पण, और भाईचारे को बढ़ावा देता है और लोगों के बीच एकता और प्यार की भावना को स्थापित करता है।

ईद उल अजहा का दूसरा नाम क्या है?

ईद उल अजहा का दूसरा नाम ‘बकरीद (Bakrid)‘ है। यह नाम उन जानवरों के बलि देने की प्रथा को संकेतित करता है, जिनमें सबसे प्रमुख जानवर बकरा (यानी बकरी) शामिल होता है। इस दिन मुस्लिम समुदाय के लोग अपनी ईबादत और शुक्रिया के अभिव्यक्ति के रूप में बकरा की कुर्बानी करते हैं। इसलिए यह ईद भी ‘बकरीद‘ के नाम से जानी जाती है।

ईद उल जुहा पर क्या किया जाता है?

ईद उल जुहा, जिसे बकरीद भी कहा जाता है, मुस्लिम समुदाय में धार्मिक त्योहार के रूप में मनाया जाता है। यह ईद हज और हज्ज पर्व के चौथे दिन मनाई जाती है। इस दिन लोग एक पशु, जैसे कि बकरा, बैल, या ऊंट, की कुर्बानी करते हैं। यह कुर्बानी एक प्रतीकात्मक और धार्मिक कृत्य है, जो हजरत इब्राहीम (अब्राहम) और उनके परिवार द्वारा किए गए कार्यों को याद दिलाता है।

बकरीद के दिन, लोग एक पशु को चुनते हैं और उसे अल्लाह की खुशी के लिए कुर्बानी के लिए तैयार करते हैं। यह कुर्बानी धर्मिक नियमों और तरीकों के अनुसार होती है। कुर्बानी के बाद, पशु का मांस अल्लाह की राहत और गरीबों और जरूरतमंद लोगों के बीच बांटा जाता है। इससे समाज में एकात्मता, शेयरी, और सद्भावना की भावना स्थापित होती है।

इसके अलावा, लोग ईद उल जुहा पर नमाज़ेईद भी पढ़ते हैं, जो एक समूह नमाज़ की रूपरेखा है और अल्लाह के सामर्थ्य, करुणा, और बरकत की प्रार्थना करते हैं। इस दिन, लोग अपने परिवार, दोस्तों, और पड़ोसियों के साथ खुशी, प्यार, और भाईचारे का आनंद लेते हैं। वे एक-दूसरे को गिफ्ट देते हैं, मिठाई खाते हैं, और अपने आसपास के गरीबों और जरूरतमंद लोगों की मदद करते हैं। यह एक धार्मिक और सामाजिक त्योहार है जो एकता, प्यार, और दया की भावना को सुरक्षित करता है।

ईद उल अजहा और ईद उल जुहा में क्या अंतर है ?

ईद उल जुहा (Eid ul-Adha) और ईद उल अजहा (Eid ul-Azha) दोनों ही नाम एक ही त्योहार को संकेतित करते हैं। यह दोनों नाम एक ही ईद को दर्शाने के लिए प्रयोग किए जाते हैं, और इसका अर्थ होता है “कुर्बानी की ईद” या “त्याग वाली ईद”। इस ईद में लोग एक जानवर की कुर्बानी करते हैं और उसे अल्लाह की इबादत और धन्यवाद के रूप में अर्पित करते हैं।

इसके बावजूद, भाषाई रूप में इंग्लिश और हिंदी में इस त्योहार को अलग-अलग नामों से जाना जाता है। हिंदी में इसे ‘ईद उल अजहा’ या ‘बकरीद’ कहा जाता है, जबकि अंग्रेजी में इसे ‘ईद उल अजहा’ या ‘ईद अल-अज़हा’ कहा जाता है। इसलिए, यह एक मात्र नामी भेद है और इसे एक ही त्योहार को दर्शाने के लिए प्रयोग किया जाता है।

ईद उल जुहा और ईद उल अजहा एक ही ईद को संकेतित करने के लिए प्रयोग किए जाने वाले विभिन्न नाम हैं। इन नामों में कोई अंतर नहीं होता है और यह त्योहार एक ही आयोजन और उद्देश्य के साथ मनाया जाता है।

इसलिए, “ईद उल जुहा,” “ईद उल अजहा,” और “ईद उल जुहा” तीनों नाम एक ही ईद को संकेतित करने के लिए प्रयोग किए जाने वाले नाम हैं।

ईद-उल-अजहा (Eid-ul-Adha) त्योहार का आयोजन देश भर में माह ए जिलहिज्जा के चांद देखने के बाद किया जाता है। इस वर्ष, माह ए जिलहिज्जा के चांद की पुष्टि हो चुकी है और अनुसार ईद-उल-अजहा का त्योहार 29 जून को मनाया जाएगा। इस खुशी के अवसर पर, उलेमा (धार्मिक गुरुओं) ने लोगों से मिलकर ईद की खुशियां मनाने की अपील की है।

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